Tuesday, February 3, 2009
एक कविता प्यार की
नही पूछता क्या संग चलोगी जीवन के पथरीले पथ पर
नही पूछता क्या संग जलोगी दुखों के अग्निरथ पर
कहता नही मैं यह भी दुल्हन बन मेरे घर आओ
या बनकर जूही तुम आंगन में मेरे शरमाओ
न ही प्रेम की बातें तुम से न ही कोई प्रणय निवेदन
क्या तडपती हो विरह में इस पर नही ह कोई विवेचन
पर तुम्हें ह शपथ तुमारी बतलाओ तुम
क्या प्यार मुझे तुम करती हो क्या याद मुझे तुम करती हो
नही पूछता क्या संग जलोगी दुखों के अग्निरथ पर
कहता नही मैं यह भी दुल्हन बन मेरे घर आओ
या बनकर जूही तुम आंगन में मेरे शरमाओ
न ही प्रेम की बातें तुम से न ही कोई प्रणय निवेदन
क्या तडपती हो विरह में इस पर नही ह कोई विवेचन
पर तुम्हें ह शपथ तुमारी बतलाओ तुम
क्या प्यार मुझे तुम करती हो क्या याद मुझे तुम करती हो
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